महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 89 श्लोक 61-75

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एकोननवतितम (89) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: एकोननवतितम अध्याय: श्लोक 61-75 का हिन्दी अनुवाद

वे बाण मेंघों की बरसायी हुई जलधाराओं के समान शब्द करते हुए पाण्डुपुत्र अर्जुन को जा लगे। तत्पश्चात् अप्रतिम प्रभावशाली और भयंकर बलवान् कर्ण ने तीन तीन बाणों से श्रीकृष्ण, अर्जुन और भीमसेन को घायल करके बडे़ जोर से भयानक गर्जना की। कर्ण के बाणों से घायल हुए किरीटधारी कुन्तीकुमार अर्जुन भीमसेन तथा भगवान् श्रीकृष्ण को भी उसी प्रकार क्षत-विक्षत देखकर सहन न कर सके; अतः उन्होंने अपने तरकस से पुनः अठारह बाण निकाले। एक बाण से कर्ण की ध्वजा को बींधकर अर्जुन ने चार बाणों से शल्य को और तीन बाणों से कर्ण को घायल कर दिया।। तत्पश्चात् उन्होंने दस बाण छोड़कर सुवर्णमय कवच धारण करनेवाले सभापति नामक राजकुमार को मार डाला। वह राजकुमार मस्तक, भुजा, घोडे़, सारथि, धनुष और ध्वज रहित हो मरकर रथ के अग्रभाग से नीचे गिर पड़ा, मानों फरसों से काटा गया शालवृक्ष टूटकर धराशायी हो गया हो। इसके बाद अर्जुन ने पुनः तीन, आठ, दो, चार, और दस बाणों द्वारा कर्ण को बारंबार घायल करके अस्त्र-शस्त्रधारी सवारों सहित चार सौ हाथियों को मारकर आठ सौ रथों को नष्ट कर दिया। तदनन्तर सवारोंसहित हजारों घोड़ों और सहस्त्रों पैदल वीरों को मारकर रथ, सारथि और ध्वजसहित कर्ण को भी शीघ्रगामी बाणों द्वारा ढ़क्कर अदृश्य कर दिया।
अर्जुन की मार खाते हुए कौरव सैनिक चारों ओर से कर्ण को पुकारने लगे- कर्ण ! शीघ्र बाण छोड़ों और अर्जुन को घायल कर डालो। कहीं ऐसा न हो कि ये पहले ही समस्त कौरवों का वध कर डालें। इस प्रकार पे्ररणा मिलने पर कर्ण ने सारी शक्ति लगाकर बारंबार बहुत-से बाण छोड़े। रक्त और धूल में सने हुए वे मर्मभेदी बाण पाण्डव और पांचालों का विनाश करने लगे। वे दोनों सम्पूर्ण धनुर्धरों में श्रेष्ठ, महाबली, सारे शत्रुओं का सामना करने में समर्थ और अस्त्रविद्या के विद्वान् थे; अतः भयंकर शत्रुसेना को तथा आपस में भी एक दूसरे को महान् अस्त्रों द्वारा घायल करने लगे। तत्पश्चात् शिविर में हितैषी वैद्यशिरोमणियों ने मन्त्र और ओषधियों द्वारा राजा युधिष्ठिर के शरीर से बाण निकालकर उन्हें रोगरहित (स्वस्थ) कर दिया; इसलिये वे बड़ी उतावली के साथ सुवर्णमय कवच धारण करके वहाँ युद्ध देखने के लिये आये। धर्मराज को युद्धस्थल में आया हुआ देख समस्त प्राणी बड़ी प्रसन्नता के साथ अभिनन्दन करने लगे।
ठीक उसी तरह, जैसे राहुके ग्रहण से छूटे हुए निर्मल एवं सम्पूर्ण चन्द्रमा को उदित देख सब लोग बडे़-प्रसन्न होते हैं। परस्पर जूझते हुए उन दोनों शत्रुनाशक एवं प्रधान शूरवीर कर्ण और अर्जुन को देखकर उन्हीं की ओर दृष्टि लगाये आकाश और भूतल में ठहरे हुए सभी दर्शक अपनी-अपनी जगह स्थिर भाव से खड़े रहे। उस समय वहाँ अर्जुन और कर्ण उत्तम बाणों द्वारा एक दूसरे को चोट पहुँचा रहे थे। उनके धनुष, प्रत्यंचा और हथेली का संघर्ष बड़ा भयंकर होता जा रहा था और उससे उत्तमोत्तम बाण छूट रहे थे। इसी समय पाण्डुपुत्र अर्जुन के धनुष की डोरी अधिक खींची जाने के कारण सहसा भारी आवाज के साथ टूट गया। उस अवसर पर सूतपुत्र कर्ण ने पाण्डुकुमार अर्जुन को सौ बाण मारे। फिर तेलके धाये और पक्षियों के पंख लगाये गये, केंचुल छोड़कर निकले हुए सर्पो के समान भयंकर साठ बाणों द्वारा वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण को भी क्षत-विक्षत कर दिया। इसके बाद पुनः अर्जुन को आठ बाण मारे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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