महाभारत आदि पर्व अध्याय 227 श्लोक 1-19

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सप्तविंशत्यधिकद्विशततम (227) अध्‍याय: आदि पर्व (मयदर्शन पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: सप्तविंशत्यधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

देवताओं की पराजय, खाण्डववन का विनाश और मयासुर की रक्षा

वैशम्पायनजी कहते हैं - जनमेजय ! इस प्रकार पर्वत शिखर के गिरने से खाण्डववन में रहने वाले दानव, राक्षस, नाग, चीते तथा रीछ आदि वनचर प्राणी भयभीत हो उठे। मद की धारा बहाने वाले हाथी, शार्दूल, केसरी, सिंह, मृग, भैंस, सैंकड़ों पक्षी तथा दूसरी-दूसरी जाति के प्राणी अत्यन्त उदिग्न हो इधर-अधर भागने लगे। उन्होनें उस जलते हुए वन को और मारने के लिये अस्त्र उठाये श्रीकृष्ण और अर्जुन को देखा। उत्पात और आर्तनाद के शब्द से उस वन में खडे़ हुए वे सभी प्राणी संत्रस्त से हो उठे थे। उस वन को अनेक प्रकार से दग्ध होते देख और अस्त्र उठाये हुए श्रीकृष्ण पर दृष्टि डाल भयानक आर्तनाद करने लगे ।। पर दृष्टि डाल भयानक आर्तनाद करने लगे। उस भयंकर आर्तनाद और अग्निदेव की गर्जना से वहाँ का सम्पूर्ण आकाश मानो उत्पातकालिक मेघों की गर्जना से गूँज रहा था। तब महाबाहु श्रीकृष्ण ने अपने तेज से प्रकाशित होने वाले उस अत्यन्त भयंकर महान् चक्र को उन दैत्य आदि प्राणियों के विनाश के लिये छोड़ा। उस चक्र के प्रहार से पीड़ित हो दानव, निशाचर आदि समस्त क्षुद्र प्राणी सौ-सौ टुकडे़ होकर क्षणभर में आग में गिर गये। श्रीकृष्ण के चक्र से विदीर्ण हुए दैत्य मेदा तथा श्रक्त में सनकर संध्याकाल के मेघों की भाँति दिखायी देने लगे। भारत ! भगवान् श्रीकृष्ण वहाँ सहस्त्रों पिशाचों, पक्षियों, नागों तथा पशुओं का वध करते हुए काल के समान विचर रहे थे। शत्रुघाती श्रीकष्ण के द्वारा बार-बार चलाया हुआ वह चक्र अनेक प्राणियों का संहार करके पुनः उनके हाथ में चला आता था। इस प्रकार पिशाच, नाग तथा राक्षसों का संहार करने वाले सर्वभूतात्मा भगवान् श्रीकृष्ण का स्वरूप उस समय बड़ा भयंकर जान पड़ता था। वहाँ सब ओर से सम्पूर्ण दानव एकत्र हो गये थे, तथापि उनमें से एक भी ऐसा नहीं निकला, जो युद्ध में श्रीकृष्ण और अर्जुन को जीत सके । ।जब देवता लोग उन दोनों के बल से खाण्डववन की रक्षा करने और उस आग को बुझाने में सफल न हो सके, तब पीठ दिखाकर चल दिये। राजन् ! शतक्रतु इन्द्र देवताओं के विमुख हुआ देख श्रीकृष्ण और अर्जुन की प्रशंसा करते हुए बडे़ प्रसन्न हुए। देवताओं के लौट आने पर इन्द्र को सम्बोधित करके बडे़ गम्भीर स्वर से आकाशवाणी हुई -। ‘वासव ! तुम्हारे सखा नागप्रवर तक्ष कइस समय यहाँ नहीं हैं। वे खाण्डवदाह के समय कुरूक्षेत्र चले गये थे। ‘भगवान् वासुदेव तथा अर्जुन को किसी प्रकार युद्ध से जीता नहीं जा सकता। मेरे कहने से तुम इस बात को समझ लो। वे दोनों पहले के देवता नर और नारायण हैं। देवलोक में भी इनकी ख्याति है। इनका बल और पराक्रम कैसा है, यह तुम भी जानते हो। ये अपराजित और दुर्घर्ष वीर हैं। सम्पूर्ण लोकों में किसी के द्वारा भी वे युद्ध में जीते नहीं जा सकते।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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