महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 89 श्लोक 90-97

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एकोननवतितम (89) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: एकोननवतितम अध्याय: श्लोक 90-97 का हिन्दी अनुवाद

वे बाण नहीं, तक्षकपुत्र अश्वसेन के पक्षपाती पाँच विशाल सर्प थे। अर्जुन ने सावधानी से छौड़े़ गये दस भल्लों द्वारा उनमें से प्रत्येक के तीन-तीन टुकडे़ कर डाले। अर्जुन के बाणों से मारे जाकर वे पृथ्वी पर गिर पडे़। कर्ण के हाथों से छूटे हुए उन सभी बाणों द्वारा श्रीकृष्ण के श्रीअंगों को घायल हुआ देख किरीटधारी अर्जुन सूखे काठ या घास-फूस के ढेर को जलानेवाली आग के समान क्रोध से प्रज्जवलित हो उठे। उन्होंने कानतक खींचकर छौड़े़ गये शरीरनाशक प्रज्जवलित बाणों द्वारा कर्ण के मर्मस्थानों में गहरी चोट पहुँचायी। कर्ण दुःख से विचलित हो उठा; परन्तु किसी तरह मन में धैर्य धारण करके दैवयोग से रणभूमि में डटा रहा।। राजन् ! तत्पश्चात् क्रोध में भरे हुए अर्जुन ने बाणसमूहों का ऐसा जाल फैलाया कि दिशाएँ, विदिशाएँ, सूर्य की प्रभा और कर्ण का रथ सब कुछ कुहासे से ढके हुए आकश की भाँति अदृश्य हो गया।
नरेश्वर ! कुरूकुल के श्रेष्ठ पुरूष अद्वितीय वीर शत्रुनाशक सव्यसाची अर्जुन ने कर्ण के चक्ररक्षक, पादरक्षक, अग्रगामी और पृष्ठरक्षक सभी कौरव दल के सारभूत प्रमुख वीरों को, जो दुर्योधन की आज्ञा के अनुसार चलनेवाले और युद्ध के लिये सदा उद्यत रहनेवाले थे तथा जिनकी संख्या दो हजार थी, एक ही क्षण में रथ, घोड़ों और सारथियों सहित काल के गाल में भेज दिया। तदनन्तर जो मरने से बच गये थे, वे आपके पुत्र और कौरव सैनिक कर्ण को छोड़कर तथा मारे गये और बाणों और बाणों से घायल हो सगे-सम्बन्धियों को पुकारने वाले अपने पुत्रों एवं पिताओं की भी उपेक्षा करके वहाँ से भाग गये। अर्जुन के बाणों से संतप्त और क्षत-विक्षत हो समस्त कौरवयोद्धा जब वहाँ खडे़ हुए, तब दुर्योधन ने उनमें से श्रेष्ठ वीरों को पुनः कर्ण के रथ के पीछे जाने के लिये आज्ञा दी। दुर्योधन बोला- क्षत्रियो ! तुम सब लोग शुरवीर हो, क्षत्रियधर्म में तत्पर रहते हो। यहाँ कर्ण को छोड़कर उसके निकट से भाग जाना तुम्हारे लिये कदापि उचित नहीं है।। संजय कहते हैं- राजन् ! आपके पुत्र के दस प्रकार कहने पर भी वे योद्धा वहाँ खडे़ न हो सके। अर्जुन के बाणों से उन्हें बडी़ पीड़ा हो रही थी। भ्य से उनकी कांति फीकी पड़ गयी थी; इसलिये वे क्षणभर में दिशाओं और उनके कोनों में जाकर छिप गये। भारत ! भय से भाग हुए कौरवायोद्धाओं से परित्यक्त हो सम्पूर्ण दिशाओं को सूनी देखकर भी वहाँ कर्ण अपने मन में तनिक भी व्यथित नहीं हुआ। उसने पूरे हर्ष और उत्साह के साथ ही अर्जुन पर धावा किया।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में कर्ण और अर्जुन का द्वैरथ-युद्धविषयक नवासीवां अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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