महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 122 श्लोक 39-58

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द्वाविशत्‍यधिकशततम (122) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: द्वाविशत्‍यधिकशततम अध्याय: श्लोक 39-58 का हिन्दी अनुवाद

तत्पश्चात् शत्रुवीरों का संहार करने वाले आचार्य ने सूर्य और अग्नि के समान अत्यन्त भयंकर बाणा को धनुष पर रक्खा और उसे वीरकेतु के रथ पर चला दिया। राजन् ! वह प्रज्वलित होता हुआ सा बाण पान्चार कुलनन्दन वीरकेतु को विदीर्ण करके खून से लथपथ हो तुरंत ही धरती में समा गया। फिर तो पान्चालकुल को आनन्दित करने वाला वह राजकुमार वायु से टूटकर पर्वत के शिखर से नीचे गिरने वाले चम्पा के विशाल वृक्ष के समान तुरंत रथ से नीचे गिर पड़ा। उस महान् धनुर्धर महाबली राजकुमार के मारे जाने पर पान्चाल सैनिकों ने शीघ्र ही आकर द्रोणाचार्य को चारों ओर से घेर लिया। भारत ! चित्रकेतु, सुधन्वा, चित्रवर्मा और चित्ररथ - ये चारों वीर अपने भाई की मृत्यु से दुःचिात हो युद्ध की इच्छा रखकर एक साथ ही द्रोणपर टूट पड़े और जिस प्रकार वर्षाकाल में मेघ पानी बरसाते हैं, उसी प्रकार वे बाणों की वर्षा करने लगे। उन महारथी राजकुमारों द्वारा बारंबार घायल किये जाने पर द्विजश्रेष्ठ द्रोण ने उनके विनाश के लिये महान् क्रोध प्रकट किया। तब द्रोणाचार्य ने उनके ऊपर बाणों का जाल सा बिछा दिया। नृपश्रेष्ठ ! द्रोणाचार्य के कान तक खींचकर छोड़े हुए उन बाणों द्वारा घायल होकर वे राजकुमार यह भी न जान सके कि हमें क्या करना चाहिये ?
भरतनन्दन ! रणक्षेत्र में कुपित हुए द्रोणाचार्य ने हँसते हुए से अपने बाणों द्वारा उन किंकर्तव्यविमूढ़ राजकुमारों को घोड़े, सारथि तथा रथ से हीन कर दिया। तत्पश्चात् दूसरे तेज धार वाले भल्लों से महायशस्वी द्रोण ने उन राजकुमारों के मस्तक उसी प्रकार काट गिराये, मानों वृक्षों से फूल चुन लिये हों। राजन् ! जैसे पूर्वकाल के देवासुर संग्राम में दैत्य और दानव धराशायी हुए थे, उसी प्रकार वे सुन्दर कान्तिवाले राजकुमार मारे जाकर उस समय रथों से पृथ्वी पर गिर पड़े। महाराज ! प्रतापी द्रोण ने युद्ध स्थल में उन राजकुमारों का वध करके सुवर्णमय पृष्ठभाग वाले दुर्जय धनुष को घुमाना आरम्भ किया।
राजन् ! उस समय व िधनुष मेंघों की घटा में बिजली के समान प्रकाशित हो रहा था। देवताओं के समान तेजस्वी पान्चाल महारथियों को मारा गया देख धृष्टद्युम्न अत्यन्त उद्विग्न हो नेत्रों में आँसू बहाते हुए कुपित हो उठे और संग्राम भूमि में द्रोणाचार्य के रथ की ओर बढ़े। राजन् ! रणक्षेत्र में धृष्टद्युम्न के बाणों से द्रोणाचार्य की गति अवरुद्ध हुई देख ( कौरव सेना में ) सहसा हाहाकार मच गया। महामना धृष्टद्युम्न के द्वारा बाणों से आच्छादित किये जाने पर भी द्रोणाचार्य को तनिक भी व्यथा नहीं हुई। वे मुसकराते हुए ही युद्ध में संलग्न रहे। महाराज ! तत्पश्चात् धृष्टद्युम्न ने क्रोध से अचेत होकर घ्ुकी हुई गाँठ वाले नब्बे बाणों द्वारा द्रोणाचार्य की छाती में प्रहार किया। बलवान् वीर धृष्टद्युम्न के द्वारा गहरी चोट पहुँचायी जाने पर महायशस्वी द्रोणाचार्य रथ के पिछले भाग में बैठ गये और मूर्छित हो गये । उनको उस अवस्था में देखकर बल और पराक्रम से सम्पन्न धृष्टद्युम्न ने धनुष रख दिया और तुरंत ही तलवार हाथ में ले ली। माननीय नरेश ! महारथी धृष्टद्युम्न शीघ्र ही अपने रथ से कुदकर द्रोणाचार्य के रथ पर जा चढ़े।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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