महाभारत आदि पर्व अध्याय 169 श्लोक 69-80
एकोनसप्तधिकशततम (169) अध्याय: आदि पर्व (चैत्ररथ पर्व)
कुन्तीनन्दन ! इसके सिवा एक बात यह भी है कि रात के समय हम लोगों का बल बहुत बढ़ जाता है। इसी से स्त्री के साथ रहने के कारण मुझमें क्रोध का आवेश हो गया था। तपती के कुल की वृद्धि करने वाले अर्जुन ! आपने जिस कारण युद्ध में मुझे पराजित किया है, उसे (भी) बतलाता हूं; सुनिये। ब्रह्मचर्य सबसे बड़ा धर्म है और वह तुममें निश्चितकाल रुप से विद्यमान है। कुन्तीनन्दन ! इसीलिये युद्ध में मैं तुमसे हार गया हूं। शत्रुओं को संताप देनेवाले वीर ! यदि दूसरा कोई कामासक्त क्षत्रिय रात में मुझसे युद्ध करने आता तो किसी प्रकार जीवित नहीं बच सकता था। किंतु कुन्तीकुमार ! कामासक्त होने पर भी यदि कोई पुरुष किसी ब्राह्माण को आगे करके चले तो वह समस्त निशाचरों पर विजय पा सकता है; क्योंकि उस दशा में उसका सारा भार पुरोहित पर होता है। अत: तपतीनन्दन ! मनुष्यों को इस लोक में जो भी कल्याणकारी कार्य करना अभीष्ट हो, उसमें वह मन और इन्द्रियों को वश में रखनेवाले पुरोहितों को नियुक्त करे। जो छहों अंगोंसहित वेद के स्वाध्याय में तत्पर, र्इमानदार, सत्यवादी, धर्मात्मा ओर मन को वश में रखनेवाले हों, ऐसे ही ब्राह्मण राजाओं के पुरोहित होने चाहिये। जिसके यहां धर्मज्ञ, वक्ता, शीलवान् और ईमानदार ब्राह्मण पुरोहित हो, उस राजा को इस लोक में निश्चय ही विजय प्राप्त होती है और मरने के बाद उसे स्वर्गलोक मिलता है। राजा को किसी अप्राप्त वस्तु या धन को प्राप्त करने अथवा उपलब्ध धन आदि की रक्षा करने के लिये गुणवान् ब्राह्मण को पुरोहित बनाना चाहिये। जो समुद्र से घिरी हुई सम्पूर्ण पृथ्वी पर अपना अधिकार चाहे या अपने लिये ऐश्वर्य पाना चाहे, उसे पुरोहित की आज्ञा के अधीन रहना चाहिये। तपतीनन्दन ! कोई भी राजा कहीं भी पुरोहित की सहायता के बिना केवल अपने बल अथवा कुलीनता के भरोसे भूमि पर विजय नहीं पाता। अत: कौरवों के कुल की वृ्द्धि करनेवाले अर्जुन! आप यह जान लें कि जहां विद्वान ब्राह्मणों की प्रधानता हो, उसी राज्य की दीर्घकाल तक रक्षा की जा सकती है।
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