महाभारत आदि पर्व अध्याय 90 श्लोक 1-11
नवतितम (90) अध्याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)
अष्टक और ययाति का संवाद
अष्टक ने पूछा- सत्ययुग के निष्पाप राजाओं में प्रधान नरेश ! जब आप इच्छानुसार रूप धारण करके दस लाख वर्षों तक नन्दन वन में निवास कर चुके हैं, तब क्या कारण है कि आप उसे छोड़कर भू तल पर चले आये? ययाति बोले- जैसे इस लोक में जाति-भाई, सुहृद् अथवा स्वजन कोई भी क्यों न हो, धन नष्ट हो जाने पर उसे सब मनुष्य त्याग देते हैं; उसी प्रकार परलोक में जिसका पुण्य समाप्त हो गया है, उस मनुष्य को देवराज इन्द्र सहित सम्पूर्ण देवता तुरंत त्याग देते हैं। अष्टक ने पूछा-देवलोक में मनुष्यों के पुण्य क्षीण होते हैं? इस विषय में मेरा मन अत्यन्त मोहित हो रहा हैं प्रजापति का वह कौन-सा धाम है, जिसमें विशिष्ट (पुनरावृत्ति की योग्यता वाले) पुरुष जाते हैं? यह बताईये; क्योंकि आप मुझे क्षेत्रज्ञ (आत्मज्ञानी) जान पड़ते हैं। ययाति बोले- नरदेव ! जो अपने मुख से अपने पुण्य कर्मों का बखान करते हैं, वे सभी इस भौम नरक में आ गिरते हैं। यहां वे गीधों, गीदड़ों और कौओं आदि के खाने योग्य इस शरीर के लिये बड़ा भारी परिश्रम करके क्षीण होते और पुत्र-पौत्रादि रूप से बहुधा विस्तार को प्राप्त होते हैं। इसलिये नरेन्द्र ! इस लोक में जो दुष्ट और निन्दनीय कर्म हो उसको सर्वथा त्याग देना चाहिये । भूपाल ! मैंने तुमसे सब कुछ कह दिया, बोलो, अब और तुम्हें क्या बताऊं? अष्टक ने पूछा- जब मनुष्यों को मृत्यु के पश्चात पक्षी, गीध, नीलकण्ठ और पतंग ये नोच-नोचकर खा लेते हैं, तब वे कैसे ओर किस रूप में उत्पन्न होते हैं? मैंने अब तक भौम नामक किसी दूसरे नरक कर नाम नहीं सुना था। ययाति बोले- कर्म से उत्पन्न होने और बढ़ने वाले शरीर को पाकर गर्भ से निकलने के पश्चात जीव सबके समक्ष इस पृथ्वी पर (विषयों में) विचरते हैं। उनका यह विचरण ही भौम नरक कहा गया है। इसी में वे पड़ते हैं। इसमें पड़ने पर वे व्यर्थ बीतने वाले अनेक वर्ष समूहों की ओर दृष्टिपात नहीं करते। कितने ही प्राणी आकाश (स्वर्गादि) में साठ हजार वर्ष रहते हैं। कुछ अस्सी हजार वर्षों तक वहां निवास करते हैं। इसके बाद वे भूमि पर गिरते हैं। यहां उन गिरने वाले जीवों को तीखी दाढ़ों वाले पृथ्वी के भयानक राक्षस (दुष्ट प्राणी) अत्यन्त पीड़ा देते हैं। अष्टक ने पूछा- तीखी दाढ़ों वाले पृथ्वी के वे भयंकर राक्षस पाप वश आकाश से गिरते हुए जिन जीवों को सताते हैं, वे गिरकर कैसे जीवित रहते हैं? किस प्रकार इन्द्रिय आदि से युक्त होते हैं? और कैसे गर्भ में आते हैं? ययाति बोले- अन्तरिक्ष से गिरा हुआ प्राणी अस्त्र (जल) होता है। फिर वही क्रमश: नूतन शरीर का बीजभूत वीर्य बन जाता है। वह वीर्य फूल और फलरूपी शेष कर्मों से संयुक्त होकर तदनुरुप योनि का अनुसरण करता है। गर्भाधान करने वाले पुरुष के द्वारा स्त्री संसर्ग होने पर वह वीर्य में आविष्ट हुआ जीव उस स्त्री के रज से मिल जाता है। तदनन्तर वहीं गर्भरूप में परिणित हो जाता है। जीव जलरुप से गिरकर वनस्पतियों और ओषधियों में प्रवेश करते हैं। जल, वायु, पृथ्वी और अन्तरिक्ष आदि में प्रवेश करते हुए कर्मानुसार पशु अथवा मनुष्य सब कुछ होते हैं। इस प्रकार भूमि पर आकर फिर पूर्वोक्त क्रम के अनुसार गर्भभाव को प्राप्त होते हैं।
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