महाभारत आदि पर्व अध्याय 90 श्लोक 24-27
नवतितम (90) अध्याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)
अग्निहोत्र, मौन, अध्ययन और यज्ञ-ये चार कर्म मनुष्य को भय से मुक्त करने वाले हैं; परंतु वे ही ठीक से न किये जायं, अभिमान पूर्वक उनका अनुष्ठान किया जाय तो वे उलटे भय प्रदान करते हैं। विद्वान पुरुष सम्मानित होन पर अधिक आनन्दित न हो और अपमानित होने पर संतप्त न हो। इस लोक में संत पुरुष ही सत्पुरुषों का आदर करते हैं। दुष्ट पुरुषों को ‘यह सत्पुरुष है’ ऐसी बुद्धि प्राप्त ही नहीं होती। मैं यह दे सकता हूं, इस प्रकार यजन करता हूं, इस तरह स्वाध्याय में लगा रहता हूं और यह मेरा व्रत है; इस प्रकार जो अहंकार पूर्वक वचन हैं, उन्हें भयरुप कहा गया है। ऐसे वचनों को सर्वथा त्याग देना चाहिये। जो सबका आश्रय है, पुराण (कूटस्थ) है तथा जहां मन की गति भी रुक जाती है वह (परब्रह्म परमात्मा) तुम सब लोगों के लिये कल्याणकारी हो। जो विद्वान् उसे जानते हैं, वे उस परब्रह्म परमात्मा से संयुक्त होकर इहलोक और परलोक में परम शान्ति को प्राप्त होते हैं।
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