महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 190 श्लोक 1-22
नवत्यधिकशततम (190) अध्याय: उद्योग पर्व (अम्बोपाख्यान पर्व)
हिरण्यवर्मा के आक्रमण के भय से घबराते हुए द्रुपद का अपनी महारानी से संकटनिवारण का उपाय पूछना
भीष्मजी कहते हैं- राजन्! दूत के ऐसा कहने पर पकडे़ गये चोर की भांति राजा द्रुपद के मुख से सहसा कोई बात नहीं निकली । उन्होंने मधुरभाषी दूतों के द्वारा यह संदेश देकर कि ‘ऐसी बात नहीं है (आपको धोखा नहीं दिया गया है)’ अपने सम्बन्धी को मनाने का दुष्कर प्रयत्न किया । राजा हिरण्यवर्मा ने जब पुन: पता लगाया तो पाञ्चालराज की पुत्री शिखण्डिनी कन्या ही है, यह बात ठीक जान पड़ी। इससे रूष्ट होकर उन्होंने बड़ी उतावली के साथ द्रुपद पर आक्रमण करने का निश्चय किया । तदनन्तर राजा ने धायों के कथनानुसार अपनी कन्या को द्रुपद के द्वारा धोखा दिये जाने का समाचार अमिततेजस्वी मित्र राजाओं के पास भेजा ।भारत! इसके बाद नृपश्रेष्ठ हिरण्यवर्मा ने सैन्य-संग्रह करके राजा द्रुपद के ऊपर चढा़ई करने का निश्चय किया । राजेन्द्र! फिर राजा हिरण्यवर्मा ने अपने मन्त्रियों के साथ बैठकर परामर्श किया कि मुझे पाञ्चालनरेश के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिये । वहां महामना मित्र राजाओं का यह निश्चय घोषित हुआ कि राजन्! यदि यह सत्य सिद्ध हुआ कि शिखण्डी वास्तव में पुत्र नहीं, कन्या है, तब हम लोग पाञ्चालराज को कैद करके अपने घर ले आयेंगे और पाञ्चालदेश के राज्यपर दूसरे किसी राजा को बिठाकर शिखण्डीसहित द्रुपद को मरवा डालेंगे । फिर दूत के मुख से उस समाचार को यथार्थ जानकर राजा हिरण्यवर्मा ने द्रुपद के पास दूत भेजा। स्थिर रहो (सावधान हो जाओ), मैं कुछ ही दिनों में तुम्हारा संहार कर डालूंगा । भीष्म कहते हैं- राजा द्रुपद उन दिनों स्वभाव से ही भीरू थे। फिर उनके द्वारा अपराध भी बन गया था। अत: उन्होंने बडे़ भारी भय का अनुभव किय। राजा द्रुपद ने दशार्णनरेश के पास दूतों को भेजकर शोक से अधीर हो एकान्त स्थान में अपनी पत्नी से मिलकर इस विषय में बातचीत करने की इच्छा की । पाञ्चालराज के हृदय में बड़ा भारी भय समा गया था। वे शोक से पीड़ित थे। अत: उन्होंने अपनी प्यारी पत्नी शिखण्डी की माता से इस प्रकार कहा- ‘देवि! मेरे महाबली सम्बन्धी हिरण्यवर्मा क्रोध वश अपनी विशाल सेना लाकर मेरे ऊपर आक्रमण करेंगे । ‘इस समय हम दोनों क्या करे? इस कन्या के प्रश्न को लेकर हम लोग किंकर्तव्यविमूढ़ हो रहे हैं। सम्बन्धी के लेकर मन में यह शंका दृढ़मूल हो गयी है कि तुम्हारा पुत्र शिखण्डी वास्तव में कन्या हैं । ‘यह सोचकर वे ऐसा मानने लगे हैं कि मेरे साथ धोखा किया गया हैं और इसलिये वे अपने मित्रों, सैनिकों तथा सेवकों सहित आकर मुझे यत्नपूर्वक उखाड़ फेंकना चाहते हैं। सुश्रोणि! यहां क्या सच है और क्या झूठ? शोभने! इस बात को तुम्हीं बताओं। तुम्हारे मुख से निकले हुए शुभ वचन को सुनकर मैं वैसा ही करूंगा । ‘रानी! मेरा जीवन संशय में पड़ गया हैं। यह शिखण्डिनी भी बालिका ही है। सुन्दरि! तुम भी महान् संकट में फंस गयी हो । ‘सुश्रोणि! मैं पूछ रहा हूं। सबको संकट से छुड़ाने के लिये कोई यथार्थ उपाय बताओ। शुचिस्मिते! मैं उस उपाय को शीघ्र ही काम में लाऊंगा ‘सुन्दर अङ्गोवाली महारानी! तुम शिखण्डी के विषय में भय मत करो। मैं दया करके वही कार्य करूंगा, जो वस्तुत: हितकारक होगा, मैं स्वयं पुत्रधर्म से वञ्चित हो गया हुं । ‘और मैंने दशार्णनरेश महाराज हिरण्यवर्मा को वञ्चित किया हैं। अत: महाभागे! इस अवसर पर तुम्हारी दृष्टि में जो हितकारक कार्य हो, उसे बताओ। मैं उसका अनुष्ठान करूंगा’ । यद्यपि राजा द्रुपद सब कुछ जानते थे तो भी दूसरे लोगों में अपनी निर्दोषता सिद्ध करने के लिये महारानी से स्पष्ट शब्दों में पूछा। उनके प्रश्न करने पर रानी ने राजा को इस प्रकार उत्तर दिया ।
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