महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 191 श्लोक 20-30
एकनवत्यधिकशततम (191) अध्याय: उद्योग पर्व (अम्बोपाख्यान पर्व)
राजन्! वह वन समृद्धिशाली यक्ष स्थूणाकर्ण के द्वारा सुरक्षित था। इसी के भय से साधारण लोगों ने उस वन में आना-जाना छोड़ दिया था । उसके भीतर स्थूणाकर्ण का विशाल भवन था, जो चूना और मिट्टी से लीपा गया था। उसके परकोटै और फाटक बहुत ऊंचे थे। उसमें खसकी जड़ के धूम की सुगन्ध फैली हुई थी । उस भवन में प्रवेश करके द्रुपदपुत्री शिखण्डिनी बहुत दिनों तक उपवास करके शरीर को सुखाती रही । स्थूणाकर्ण यक्ष ने उसे इस अवस्था में देखा। देखकर उसके हृदय में कोमल भाव का उदय हुआ। फिर उसने पूछा- ‘भद्रे! तुम्हारा यह उपवास-व्रत किसलिये है? अपना प्रयोजन शीघ्र बताओ। मैं उसे पूर्ण करूंगा’ । यह सुनकर उसने यक्ष से बार-बार कहा- ‘यह तुम्हारे लिये असम्भव हैं।’ तब यक्ष ने बार-बार उत्तर दिया- ‘मैं तुम्हारा मनोरथ अवश्य पूर्ण कर दूंगा । ‘राजकुमारी! मैं कुबेर का सेवक हूं। मुझमें वर देने की शक्ति हैं, तुम्हारी जो भी इच्छा हो बताओ। मैं तुम्हें अदेय वस्तु भी दे दूंगा’ । भरतनन्दन! तब शिखण्डिनी ने उस यक्षप्रवर स्थूणाकर्ण से अपना सारा वृत्तान्त विस्तारपूर्वक बताया । शिखण्डिनी बोली- यक्ष! मेरे पुत्रहीन पिता अब शीघ्र ही नष्ट हो जायंगे; क्योंकि दशार्णराज कुपित होकर उन पर आक्रमण करेंगे । वे सुवर्णमय कवच से युक्त नरेश महाबली और महान् उत्साही हैं- यक्ष! तुम मेरे माता-पिता की और मेरी भी उनसे रक्षा करो । गुह्यक! महायक्ष! तुमने मेरे दु:खनिवारण के लिये प्रतिज्ञा की हैं। मैं चाहती हूं कि तुम्हारी कृपा से एक श्रेष्ठ पुरूष हो जाऊं। जब तक राजा हिरण्यवर्मा हमारे नगर पर आक्रमण नहीं कर रहे हैं, तभी तक मुझ पर कृपा करो ।
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