महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 72 श्लोक 1-20
द्विसप्ततितम (72) अध्याय: कर्ण पर्व
श्रीकृष्ण और अर्जुन की रणयात्रा, मार्ग में शुभ शकुन तथा श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रोत्साहन
संजय कहते हैं – राजन् ! इस प्रकार धर्मराज युधिष्ठिर को प्रसन्न करके अर्जुन सूतपुत्र कर्ण का वध करने के लिये उद्यत हो प्रसन्नचित्त होकर श्री कृष्ण से बोले- गोविन्द ! अब मेरा रथ तैयार हो । उसमें पुन: उत्तम घोड़े जोते जायँ और मेरे उस विशाल रथ में सब प्रकार के अस्त्र-शस्त्र सजाकर रख दिये जायँ । अश्वारोहियों द्वारा सिखलाये और टहलाये गये घोडे़ रथ सम्बन्धी उपकरणों से सुसज्जित हो शीघ्र यहाँ आवें और आप सूतपुत्र के वध की इच्छा से जल्दी ही यहाँ से प्रस्थान कीजिये । महाराज ! महात्मा अर्जुन के ऐसा कहने पर भगवान् श्री कृष्ण ने दारूक से कहा – सारथे ! समस्त धनुर्धारियों में श्रेष्ठ भरतभूषण अर्जुन ने जैसा कहा है, उसके अनुसार सारी तैयारी करो । नृपश्रेष्ठ ! श्री कृष्ण के इस प्रकार आदेश देने पर दारूक ने व्याघ्र चर्म से आच्छादित तथा शत्रुओं को तपाने वाले रथ को जोतकर तैयार कर दिया और महामना पाण्डु कुमार अर्जुन के पास आकर निवेदन किया कि आपका रथ सब सामग्रियों से सुसज्जित है । महामना दारूक के द्वारा जोतकर लाये हुए उस रथ को देखकर अर्जुन धर्मराज से आज्ञा ले ब्राह्मणों से स्वस्तिवाचन कराकर कल्याण के आश्रयभूत उस परम मंगलमय उत्तम रथ पर आरूढ़ हुए । उस समय महाबुद्धिमान् धर्मराज राजा युधिष्ठिर ने अर्जुन को आशीर्वाद दिये ।
तत्पश्चात् उन्होंनें कर्ण के रथ की ओर प्रस्थान किया । भारत ! महाधनुर्धर अर्जुन को आते देख समस्त प्राणियों को यह विश्वास हो गया कि अब कर्ण महामनस्वी पाण्डुपृ अर्जुन के हाथ से अवश्य मारा जायेगा। राजन् ! सम्पूर्ण दिशाएँ सब ओर से निर्मल हो गयी थी । नरेश्वर ! नीलकण्ठ, सारस और क्रौंच पक्षी पाण्डु नन्दन अर्जुन को दाहिने रखते हुए जाने लगे । राजन ! पुरूष जाति वाले बहुत से शुभकारक मंगलदायक पक्षी अर्जुन को युद्ध के लिये उतावले करते हुए बड़े हर्ष में भरकर चहचहा रहे थे। प्रजानाथ ! कंक, गृध, वक, बाज और कौए आदि भयानक पक्षी मांस के लिये उनके आगे आगे जा रहे थे । इस प्रकार बहुत से शुभ शकुन पाण्डुपुत्र अर्जुन को उनके शत्रुओं के विनाश तथा कर्ण के वध की सूचना दे रहे थे । युद्ध के लिये प्रस्थान करने पर कुन्ती कुमार अर्जुन के शरीर में बड़ी जोर से पसीना छूटने लगा तथा मन ही मन भारीचिन्ता होने लगी कि यह सब कैसे होगा ? रथ में बैठकर चलते समय गाण्डीवधारी अर्जुन को चिन्तामग्न देख भगवान् श्रीकृष्ण ने उनसे इस प्रकार कहा । श्रीकृष्ण बोले – गाण्डीवधारी अर्जुन ! तुमने अपने धनुष से जिन जिन वीरों पर विजय पायी है, उन्हें जीतने वाला इस संसार में तुम्हारे सिवा दूसरा कोई मनुष्य नहीं है। मैने देखा है इन्द्र के समान पराक्रमी बहुत से शूरवीर समरांगण में तुम शौर्यसम्पन्न वीर के पास आकर परम गति को प्राप्त हो गये । प्रभो ! आर्य ! जो तुम्हारे जैसा वीर न हो, ऐसा कौन पुरूष द्रोणाचार्य, भीष्म, भगदत्त, अवन्ती के राजकुमार विन्द और अनुविन्द, काम्बोजराज सुदक्षिण, महापराक्रमी श्रुतायु तथा अच्युतायु का सामना करके सकुशल रह सकता था।
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