महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 73 श्लोक 87-106
त्रिसप्ततितम (73) अध्याय: कर्ण पर्व
अन्य सब नरेश इन्हीं के योग-क्षेम में लगे हुए हैं । भद्रे ! देख, इस समय पाण्डव दुर्योधन के तेज से एक साथ ही नष्टप्राय होकर एक दूसरे का मुँह देख रहे हैं । निश्चय ही वे थोथे तिलों के समान नपुंसक हैं और नरक में डूब गये है । आज से दासों के समान कौरव नरेश की सेवा में उपस्थित होंगेद्ध । भारत ! उस समय अधर्म का ही ज्ञान रखने वाले परम दुर्बुद्धि पापी कर्ण ने तुम्हारे सुनते हुए ऐसे-ऐसे पापपूर्ण वचन कहे थे । आज तुम्हारे छोड़े हुए एवं शिला पर स्वच्छ किये हुए सुवर्ण निर्मित प्राणान्तकारी बाण पापी कर्ण के उन वचनों का उत्तर देते हुए उसे सदा के लिये शान्त कर दें । दुष्टात्मा कर्ण ने तुम्हारे प्रति और भी जो-जो पापपूर्ण बर्ताव किये हैं, उन सबको और इसके जीवन को भी आज तुम्हारे बाण नष्ट कर दें । आज दुष्टात्मा कर्ण अपने अंगों पर गाण्डीव धनुष से छूटे हुए भयंकर बाणों की चोट सहता हुआ द्रोणाचार्य और भीष्म के वचनों को याद करे । बिजली की सी प्रभा और सोनेके पंख धारण करने वाले तुम्हारे चलाये हुए शत्रुनाशक नाराच कवच छेदकर कर्ण का रक्त पान करेंगे । आज तुम्हारे हाथों से छूटे हुए वेगशाली, भयंकर एवं विशाल बाण कर्णका मर्मस्थल विदीर्ण करके उसे यमलोक भेज दें । आज तुम्हारे बाणों से पीडित हुए भूमिपाल दीन और विषादयुक्त होकर हाहाकार मचाते हुए कर्ण को रथ से नीचे गिरता देखें । आज कर्ण रक्त में डूबकर पृथ्वी पर पड़ा सो रहा हो और उसके आयुध इधर-उधर फेंके पड़े हों । इस अवस्था में उसके बन्धु-बान्धव दीन-दु:खी होकर उसे देखें । आज हाथी के रस्से के चिन्ह से युक्त अधिरथ पुत्र कर्ण का विशाल ध्वज तुम्हारे भल्ल से कटकर काँपता हुआ इस पृथ्वी पर गिर पड़े । आज राजा शल्य भी तुम्हारे सैंकड़ों बाणोंसे छिन्न-भिन्न उस सुवर्ण विभूषित रथ को, जिसके रथी और घोड़े मार डाले गये हों, छोड़कर भयभीत हो भाग जायें । माननीय पुरूषों को मान देने वाले पार्थ ! यदि तुम सूतपुत्र कर्ण को देखते-देखते अपनी प्रतिज्ञा की पूर्ति के लिये उसके पुत्र वृषसेन को बाणों द्वारा मार डालो तो अपने प्रिय पुत्र को मारा गया देखकर वह दुरात्मा कर्ण द्रोणाचार्य, भीष्म और विदुर जी की कही हुई बातों को याद करे । तत्पश्चात आज तुम्हारे द्वारा अधिरथपुत्र कर्ण को मारा गया देख तुम्हारा शत्रु दुर्योधन अपने जीवन और राज्य दोनों से निराश हो जाए । भरतश्रेष्ठ ! कर्ण के तीखे बाणों की मार खाते हुए भी वे पांचाल वीर पाण्डव सैनिकों का उद्धार करने की इच्छा से (कर्ण की ओर ही) दौड़े जा रहे हैं । अर्जुन ! तुम्हें ज्ञात होना चाहिये कि पांचाल योद्धा, द्रौपदी के पुत्र, धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, धृष्टद्यम्न के पुत्रगण, नकुल कुमार शतानीक, नकुल-सहदेव, दुर्मुख, जनमेजय, सुधर्मा और सात्यकि ये सब के सब कर्ण के वश में पड़ गये हैं । शत्रुओं को संताप देने वाले अर्जुन ! देखो, कर्ण के द्वारा घायल हुए तुम्हारे बान्धव पांचालों का वह घोर आर्तनाद रणभूमि में स्पष्ट सुनायी दे रहा है । पांचाल योद्धा किसी तरह भयभीत होकर युद्ध से विमुख नहीं हो सकते । वे महाधनुर्धर वीर महासमर में मृत्यु को कुछ नहीं गिनते हैं ।
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