महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 167 श्लोक 41-50
सप्तषष्टयधिकशततम (167) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्कचवध पर्व )
राजन्! अर्जुन के मस्तक पर सैकड़ों बाण-समूहों की वर्षा करते हुए उस राक्षस ने अपनी ओर आते हुए अर्जुन को उसी प्रकार रोक दिया, जैसे गिरिराज हिमालय प्रचण्ड वायु को रेक देता है। भारत! उस समय वहाँ मनुष्य और राक्षस में बड़े जोर से महान् संग्राम होने लगा, जो समस्त दर्शकों का आनन्द बढ़ाने वाले और गीध, कौए, बगले, उल्लू, कडक तथा गीदड़ों को हर्ष प्रदान करे वाला था। भरतनन्दन! अर्जुन ने सौ बाणों से उस राक्षस को घायल कर दिया और नौ तीखे बाणों से उसकी ध्वजा काट डाली। फिर तीन बपाणों से उसके सारथि को, तीन से ही रथ के त्रिवेणु को, एक से उसके धनुष को और चार बाणों से चारों घोड़ों को काट डाला। जब उसने पुनः दूसरे धनुष पर प्रत्यञ्चा चढ़ायी तो अर्जुन ने उसके भी दो टुकड़े कर दिये। रथहीन होने पर उस राक्षस ने जब खडग उठाया, तब अर्जुन ने एक बाण मारकर उसके भी दो खण्ड कर डाले। भरतश्रेष्ठ! तत्पश्चात् कुन्तीकुमार अर्जुन ने चार तीखे बाणों द्वारा उस राक्षसराज को बींध डाला। उन बाणों से विद्ध होकर अलम्बुष भय के मारे भाग गया राजन्! उसे परास्त करके अर्जुन मनुष्यों, हाथियों तथा घोड़ों पर बाणसमूहों की वर्षा करते हुए तुरंत ही द्रोणाचार्य के समीप चले गये। महाराज! उन यशस्वी पाण्डुकुमार के द्वारा मारे जाते हुए आपके सैनिक आँधी के उखाड़े हुए वृक्षों के समान धड़ाधड़ पृथ्वी पर गिर रहे थे। प्रजानाथ! जब इस प्रकार महात्मा अर्जुन के द्वारा उनका संहार होने लगा, तब आपके पुत्रों की सारी सेना भाग चली।
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गतघटोत्कचवध पर्व में रात्रियुद्ध के अवसर पर अलम्बुध की पराजय विषयक एक सौ सरसठवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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