महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 199 श्लोक 35-52
नवनवत्यधिकशततम (199) अध्याय: द्रोणपर्व ( नारायणास्त्रमोक्ष पर्व )
‘जब कौरव अधर्मपूर्वक हमें राज्य से निर्वासित कर रहे थे, तब जिन्होंने हमें रोकने (शान्त करने) की ही चेष्टा की थी; किन्तु उनका हित चाहने वाले हम लोगो का उस समय उन्होंने साथ नहीं दिया था । ‘जो (इस प्रकार) हम लोगो पर अत्यन्त स्नेह करनेवाले थे वे द्रोणाचार्य मारे गये हैं; अतः उनके लिये अपने भाइयों सहित मैं भी मर जाऊॅगा’ । जब कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर इस प्रकार कह रहे थे, उसी समय दशार्हकुलभूषण भगवान श्रीकृष्ण ने तुरन्त ही अपनी दोनों भुजाओं के संकेत से सारी सेना को रोककर इस प्रकार कहा - ‘योध्दाओें ! अपने अस्त्र शस्त्र शीघ्र नीचे डाल दो और सवारियों से उतर जाओा परमात्मा नारायण ने इस अस्त्र के निवारण के लिये यही उपाय निश्चित किया है । ‘तुम सब लोग हाथी, घोड़े और रथों से उतरकर पृथ्वी पर आ जाओा इस प्रकार भूमि पर निहत्थे खड़े हुए तुम लोगो को यह अस्त्र नहीं मार सकेगा । ‘हमारे योध्दा जैस तैसे इस अस्त्र के विरूध्द युध्द करते हैं, वैसे ही वैसे ये कौरव अत्यन्त प्रबल होते जा रहे हैं ।‘जो लोग अपने वाहनों से उतरकर हथ्यिार नीचे डाल देंगे और जो वीर वाहन रहित हो इसके सामने हाथ जोड़कर नमस्कार करेंगे, उन मनुष्यों को संग्राम भूमि में यह अस्त्र नहीं मारेगा । जो कोई मन से भी इस अस्त्र का सामना करेंगे, वे रसातल में चले गये हों तो भी यह अस्त्र वहाॅ पहॅुचकर उन सबको मार डालेगा । भारत ! भगवान वासुदेव का यह बचन सुनकर सब योध्दाओं ने अन्यान्य इन्द्रियों तथा मन से भी अस्त्र को त्याग देने का विचार कर लिया । राजन ! तब उन सबको अस्त्र त्याग ने लिये उध्त हुआ देख पाण्डु नन्दन भीमसेन ने उनमें हर्ष और उत्साह पैदा करते हुए इस प्रकार कहा । किसी भी वीर को किसी तरह भी अपने हथियार नहीं डालने चाहिये। मैं अपने शीघ्र्रागामी बाणो द्वारा द्रोण पुत्र के अस्त्र का निवारण करूॅगा । इस सुवर्णमयी भारी गदा से रणभूमि में द्रोण पुत्र के अस्त्रों को चूर-चूर करने के लिये मैं काल के समान प्रहार करूॅगा । इस संसार में पराक्रम की समानता करने वाला दूसरा कोई पुरूष नहीं है। ठीक वैसे ही, जैसे सूर्य के समान दूसरा कोई ज्योतिर्मय ग्रह नहीं है । गजराज के शुण्डों के समान मोटी मेरी इन भुजाओं को देखो तो सही, ये हिमालय पर्वत को भी धराषायी करने में समर्थ हैं । यहाॅ के मनुष्यों में एक ही ऐसा हॅू, जिसमें दस हजार हाथियों के समान बल है। जैसे स्वर्गलोक और देवताओं में केवल इन्द्र ही ऐसे हैं, जिनका दूसरा कोई प्रतिदन्दी योध्दा नहीं है । आज युध्दस्थल में मोटे कंधेवाली मेरी इन दोनों भुजाओं का बल देखो कि ये किस प्रकार अष्वत्थामा के प्रज्वलित एवं दीप्तिमान् अस्त्र के निवारण में समर्थ होती हैं । यदि इस नारायणास्त्र का सामना करने वाला दूसरा कोई योध्दा अब तक नहीं हुआ है, जो आज मैं कौरवों और पाण्डवों के देखते देखते इसका समाना करूॅगा । अर्जुन !अर्जुन ! वीभत्सो ! कही तुम भी न अपने गाण्डीव धनुष को नीचे डाल देनाय नहीं तो तुम में भी चन्द्रमा के समान कलंक लग जायेगा और वह तुम्हारी निर्मलता को नष्ट कर देगा ।
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