महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 199 श्लोक 53-63
नवनवत्यधिकशततम (199) अध्याय: द्रोणपर्व ( नारायणास्त्रमोक्ष पर्व )
अर्जुन बोले - भैया भीमसेन ! नाराणास्त्र, गौ और ब्राहमण - इनके समक्ष गाण्डीव धनुष को नीचे डाल दिया जायय यही मेरा उत्तम व्रत है । अर्जुन के ऐसा कहने पर भीमसेन अकेले ही सूर्य के समान तेजस्वी तथा मेघगर्जना के समान गम्भीर घोष करने वाले रथ के द्वारा शत्रुदमन द्रोण पुत्र का सामना करने के लिये चल दिये । पाण्डु पुत्र भीम बड़े जोर से शंख बजाकर और भुजाओं द्वारा ताल ठोंक कर सारी पृथ्वी को कॅपाते और आपकी सेना को भयभीत करते हुए चले । उनकी शंख ध्वनि तथा भुजाओं द्वारा ताल ठोंकने का शब्द सुनकर आपके सैनिकों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया और उन पर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी । शीघ्रतापूर्वक पराक्रम प्रकट करने वाले कुन्ती कुमार भीमसेन पलक मारते मारते अष्वत्थामा के पास पहॅुचकर बड़ी फुर्ती से अपने बाणोें का जाल बिछाते हुए उसे ढक दिया । त्ब अष्वत्थामा ने धावा करने वाले भीमसेन से हॅसकर बात की और उन पर नारायणास्त्र से अभिमन्त्रित प्रज्वलित अग्रभाग वाले बाणों की झड़ी लगा दी । रणभूमि में वे बाण प्रज्वलित मुखवाले सर्पो के समान आग उगल रहे थेय कुन्तीकुमार भीम उनसे ढक गये, मानो उनके ऊपर स्वर्णमयी चिनगारियाॅ पड़ रही हो । राजन ! उस समय युध्द स्थल में भीमसेन का रूप संध्या के समय जुगुनुओं से भरे हुए पर्वत के समान प्रतीत हो रहा था । महाराज ! भीमसेन जब द्रोणपुत्र के उस अस्त्र के सामने बाण मारने लगे, त बवह हवा का सहारा पाकर धधक उठने वाली आग के समान प्रचण्ड वेग से बढ़ने लगा । उस अस्त्र को बढ़ते देख भयंकर पराक्रमी भीमसेन को छोड़कर शेष सारी पाण्डव सेना पर महान् भय छा गया । तब वे समस्त सैनिक अपने अस्त्र शस्त्रों को धरती पर डालकर रथ, हाथी और घोड़े आदि सभी वाहनों से उतर गये । उनके हथियार डाल देने और वाहनों से उतर जाने पर उस अस्त्र की विषाल शक्ति केवल भीमसेन के माथे पर आ पड़ी । तब सभी प्राणी विषेषतः पाण्डव हाहाकार कर उठ। उन्होंने देखा, भीमसेन उस अस्त्र के तेज से आच्छादित हो गये हैं । इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत नारायणास्त्र मोक्ष पर्व में पाण्डव सेना का अस्त्र त्याग विषयक एक सौ निन्यानवेवाॅ अध्याय पूरा हुआ ।
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