महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 200 श्लोक 1-16

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द्विशततम (200) अध्याय: द्रोणपर्व ( नारायणास्‍त्रमोक्ष पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: द्विशततम अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद

श्रीकृष्ण का भीमसेन को रथ से उतारकर नारायणास्त्र को शान्त करना, अष्वत्थामा का उसके पुनः प्रयोग में अपनी असमर्थत बताना तथा अष्वत्थामा द्वारा धृष्टधुम्न की पराजय, सात्यकिका दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, कर्ण और वृषसेन - इन छः महारथियों को भगा देना फिर अष्वत्थामा द्वारा मालव, पौरव और चेदिदेष के युवराज का वध एवं भीम और अश्‍वत्‍थामा घोर युध्द तथा पाण्डव सेना का पलायन संजय कहते हैं - राजन ! भीमसेन को उस अस्त्र से घिरा हुआ देख अर्जुन उन्हें उसके तेज का निवारण करने के लिये वारूणास्त्र से ढक दिया । एक तो अर्जुन ने बड़ी फुर्ती की थी, दूसरे भीमसेन पर उस अस्त्र के तेज का आवरण था, इससे कोई भी यह देख न सका कि भीमसेन वारूणास्त्र से घिरे हुए है । घोड़े, सारथि और रथ सहित भीमसेन द्रोण पुत्र के उस अस्त्र से ढककर आग के भीतर रखी हुई आग के समान प्रतीत होते थे। वे ज्वालाओं से इतने घिर गये थे कि उनकी ओर देखना कठिन हो रहा था । राजन ! जैसे रात्रि समाप्त होने के समय सारे ज्योतिर्मय ग्रह नक्षत्र अस्ताचल की ओर चले जाते हैं, उसी प्रकार अष्वत्थामा के बाण भीमसेन के रथपर गिरने लगे । माननीय नरेश ! भीमसेन तथा उनके रथ, घोड़े और सारथि- ये सभी अश्‍वत्थामा के अस्त्र से आच्छादित हो आग की लपटों के भीतर आ गये थे । जैसे प्रलय काल में संवर्तक अग्नि चराचर प्राणियों सहित सम्पूर्ण जगत् को भस्म करके परमात्मा के मुख में प्रवेश कर जाती है, उसी प्रकार उस अस्त्र ने भीमसेन को चारों ओर से ढक लिया था । जैसे सूर्य में अग्नि और अग्नि में सूर्य प्रविष्ठ हुए हों, उसी प्रकार उस अस्त्र का तेज तेजस्वी भीमसेन पर छा गया थाय इसलिये पाण्डुपुत्र भीमसेन किसी को दिखायी नहीं पड़ते थे । वह अस्त्र भीमसेन के रथ पर छा गया था। युध्द स्थल में कोई प्रतिदन्दी योध्दा न होने से द्रोणपुत्र अश्‍वत्थामा प्रबल होता जा रहा था। पाण्डवों की सारी सेना हथियार डालकर भय से अचेत हो गयी थी और युधिष्ठिर आदि महारथी युध्द से विमुख हो गये थे। यह सब देखकर महातेजस्वी अर्जुन और भगवान श्रीकृष्ण दोनों वीर बड़ी उतावली के साथ रथ से कूदकर भीमसेन की ओर दौड़े । वहॉ पहॅुचकर वे दोनों अत्यन्त बलवान् वीर द्रोण पुत्र की अस्त्र शक्ति से प्रकट हुई उस आग में घुसकर माया द्वारा उसमें प्रविष्ट हो गये । उन दोनों ने अपने हथियार रख दिये थे, वारूणास्त्र का प्रयोग किया था तथा वे दोनों कृष्ण अधिक शक्तिशाली थे; इसलिये वह अस्त्रजनित अग्नि उन्हें जला न सकी । तद्न्तर नर नारायणस्वरूप अर्जुन और श्रीकृष्ण ने उस नारायणास्त्र की शान्ति के लिये भीमसेन और उनके सम्पूर्ण अस्त्र शस्त्रों को बलपूर्वक रथ से नीचे खींचा । खींचे जाते समय कुन्तीकुमार भीमसेन और भी जोर जोर से गर्जना करने लगे। इससे अश्‍वत्थामा वह परम दुर्जय घोर अस्त्र और भी बढ़ने लगा । उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे कहा – ‘पाण्डु नन्दन ! कुन्तीकुमार ! यह क्या बता है कि तुम मना करने पर भी युध्द से निवृत नहीं हो रहे हो। यदि ये कौरवनन्दन इस समय युध्द से ही जीते जा सकते तो हम और ये सभी नरश्रेष्ठ राजा लोग युध्द ही करते ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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