महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 119 श्लोक 19-39
एकोनविंशत्यधिकशततम अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
महाबाहो। रथियों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य, कृपाचार्य अथवा मद्रराज श्ल्य ही क्यों न खड़े हों, तथापि आपके आश्रित रहकर मुझे कदापि भय नहीं हो सकता। शत्रुसूदन। आपके पहले भी युद्ध में बहुतेरे कवचधारी, क्रूरकर्मा रणदुर्मद काम्बोजों को परास्त किया है। धनुष-बाण धारण करने वाले प्रहार कुशल यवनों को जीता है। शकों, किरातों, दरदों, बर्बरों, ताम्रलिप्तों तथा हाथों में नाना प्रकार के आयुध लिये अन्य बहुत से म्लेच्छों को पराजित किया है। इन अवसरों पर पहले कभी कोई किसी प्रकार का भय नहीं हुआ था। फिर इस गाय की खुर के समान तुच्छ युद्धस्थल में आकर क्या भय हो सकता है आयुष्मन्। बताइये, इन दो मार्गों में से किसके द्वारा आपको अर्जुन के पास पहुंचाऊं। वार्ष्णेय । आप किनके ऊपर क्रुद्ध हैं, किनकी मौत आ गयी है किनका मन आज यमपुरी में जाने के लिये उत्साहित हो रहा है। युद्ध में काल, अन्तक और यम के समान पराक्रम दिखाने वाले आप जैसे बल विक्रमसम्पन्न वीर को देखकर आज कौन कौन से योद्धा मैदान छोड़कर भागने वाले हैं महाबाहो। आज राजा यम किनका स्मरण कर रहे हैं। सात्यकि बोले- सूत। जैसे इन्द्र दानवों का वध करते हैं, उसी प्रकार आज मैं इन मथमुंडे काम्बोजों का ही वध करुंगा और ऐसा करके अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण कर लूंगा। अत: तुम उन्हीं की ओर मुझे ले चलो। इन सबका संहार करके ही आज मैं अपने प्रिय सुह्रद् पाण्डुनन्दन अर्जुन के पास चलूंगा।
आज दुर्योंधन सहित समस्त कौरव मेरा पराक्रम देखेंगे। सूत। आज इन सिरमुण्डों के मारे जाने तथा अन्य सारी सेनाओं का बारंबार विनाश होने पर युद्ध स्थल में छिन्न-भिन्न होती हुई कौरवसेना का नाना प्रकार से आर्तनाद सुनकर दुर्योधन को बड़ा संताप होगा। आज रणक्षैत्र में मैं अपने आचार्य पाण्डवप्रवर शवेत वाहन माहात्मा अर्जुन के प्रकट किये हुए मार्ग को दिखाऊंगा। आज मेरे बाणों से अपने सहस्त्रों प्रमुख योद्धाओं को मारा गया देखकर राजा दुर्योधन अत्यन्त पश्चात्ताप करेगा। आज शीघ्रतापूर्वक हाथ चलाकर उत्तम बाणों का प्रहार करते हुए मेरे धनुष को कौरव लोग अलातचक्र के समान देखेंगे।
मैं अपने बाणों से सारे कौरवसैनिकों का शरीर व्याप्त कर दूंगा और वे बारंबार रक्त बहाते हुए प्राण त्याग देंगे। इस प्रकार अपने सैनिकों का संहार देखकर सुयोधन संतप्त हो उठेगा।
आज क्रोध में भरकर मैं कौरव सेना के उत्तमोत्तम वीरों को चुन-चुनकर मारुंगा, जिससे दुर्योधन को यह मालूम होगा कि अब संसार में दो अर्जुन प्रकट हो गये हैं। आज महासमर में मेरे द्वारा सहस्त्रों राजाओं का विनाश देखकर राजा दुर्योधन को बड़ा संताप होगा। आज सहस्त्रों राजाओं का संहार करके मैं इन राजाओं के समाज में महात्मा पाण्डवों के प्रति अपने स्नेह और भक्ति का प्रदर्शन करुंगा। अब कौरवों को मेरे बल, पराक्रम और कृतज्ञता का परिचय मिल जायगा। संजय कहते है-राजन्। सात्यकि के ऐसा कहने पर सारथि ने चन्द्रमा के समान श्वेत वर्णवाले उन घोड़ों को, जो सुशिक्षित और अच्छी प्रकार सवारी काम देने वाले थे, बड़े वेग से हांका। मन और वायु के समान वेगवाले उन उत्तम घोड़ों ने आकाश को पीते हुए से चलकर युयुधान को शीघ्र ही यवनों के पास पहुंचा दिया। युद्ध में कभी पीछे ने हटने वाले सात्यकि को अपनी सेनाओं के बीच पाकर शीघ्रता पूर्वक हाथ चलाने वाले बहुतेरे यवनों ने उनके ऊपर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी।
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