महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 101 श्लोक 1-20
एकाधिकशततम (101) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
अभिमन्यु के द्वारा अलम्बुष की पराजय, अर्जुन के साथ भीष्म का तथा कृपाचार्य, अश्वत्थामा और द्रोणाचार्य के साथ सात्यकि का युद्ध धृतराष्ट्र ने पूछा- संजय ! समर में बड़े-बड़े महारथियों का संहार करते हुए शूरवीर अर्जुनकुमार अभिमन्यु के साथ राक्षस अलम्बुष किस प्रकार युद्ध किया ? इसी प्रकार शत्रुवीरों का हनन करने वाले सुभद्राकुमार ने राक्षस अलम्बुष के साथ कैसे युद्ध किया ? युद्धस्थल में उन दोनों से सम्बध रखने वाला जो भी वृत्तान्त हो, वह मुझे ठीक-ठीक बताओं। उस युद्ध के मैदान मे अर्जुन ने मेरी सेनाओं के साथ क्या किया? रथियों में श्रेष्ठ भीमसेन अथवा राक्षस घटोत्कच या नकुल-सहदेव एवं महारथी सात्यकिने क्या किया ? संजय ! यह सब मुझे यथार्थ रूप से बताओं; क्योंकि तुम इन बातों के बताने में कुशल हो।
संजय ने कहा- आर्य मैं बड़े दुख के साथ उस रोमान्चकारी संग्राम का वर्णन करूंगा। जो राक्षस राज अलम्बुष और सुभद्राकुमार अभिमन्यु में हुआ था तथा पाण्डुपुत्र अर्जुन, भीमसेन, नकुल और सहदेव ने युद्ध में किस प्रकार पराक्रम किया और उसी प्रकार भीष्म, द्रोण आदि आपके सभी योद्धाओं ने निर्भीक से होकर अद्भुत और विचित्र कर्म किये- यह सब भी मुझसे सुनिये। अलम्बुष ने समरभूमि में महारथी अभिमन्यु को जोर-जोर से गर्जना करके बार बार डाँट बतायी और खड़ा रह, खड़ा रह ऐसा कहकर बड़े वेग से उस पर धावा किया। इसी प्रकार वीर अभिमन्यु ने भी बार बार सिंहनाद करते हुए अपने पितृव्य भीमसेन के अत्यन्त वैरी महाधनुर्धर अलम्बुष पर वेग से आक्रमण किया। फिर तो वे मनुष्य तथा राक्षस दोनों वीर तुरंत ही युद्धस्थल में एक दूसरे से भिड़ गए। दोनों ही रथियों में श्रेष्ठ थे, अतः देवता और दानव की भाँति रथों द्वारा एक दूसरे का सामना करने लगे। राक्षस श्रेष्ठ अलम्बुष मायावी था और अर्जुन कुमार अभिमन्यु को दिव्यास्त्रों का ज्ञान था।
महाराज ! तदनन्तर अर्जुनपुत्र अभिमन्यु ने तीन तीखे सायकों से रणक्षेत्र में अलम्बुष को बींधकर पुनः पाँच बाणों से घायल कर दिया। तब क्रोध में भरे हुए अलम्बुष ने भी नौ शीघ्रगामी बाणों द्वारा अर्जुन पुत्र अभिमन्यु की छाती में उसी प्रकार वेगपूर्वक प्रहार किया, जैसे अडंकुश द्वारा गजराज पर प्रहार किया जाता है। भारत ! तत्पश्चात शीघ्रतापूर्वक सारे कार्य करने वाले निशाचर ने एक हजार बाण मारकर युद्धस्थल में अर्जुन के पुत्र को पीडि़त कर दिया। इससे क्रुद्व होकर अभिमन्यु ने राक्षसराज अलम्बुष की चैड़ी छाती में झुकी हुई गाँठवाले नौ पैने बाण मारे। वे बाण राक्षस के शरीर को विदीर्ण करके उसके मर्म स्थानों में धँस गये। राजन् ! उन बाणों से सम्पूर्ण अंगों के क्षत-विक्षत हो जाने पर राक्षस राज अलम्बुष खिले हुए पलाश के वृक्षों से आच्छादित पर्वत की भाँति सुशोभित होने लगा। सुवर्णमय पंख से युक्त उन बाणों को अपने अंगों में धारण किये महाबली राक्षसश्रेष्ठ अलम्बुष अग्नि की ज्वालाओं से युक्त पर्वत की भाँति शोभा पा रहा था। महाराज ! तब अमर्षशील अलम्बुष ने कुपित होकर देवराज इन्द्र के समान पराक्रमी अर्जुन कुमार को पंखवाले बाणों से आच्छादित कर दिया। उसके द्वारा छोड़े हुए यमदण्ड के समान भयंकर एवं तीखे बाण अभिमन्यु के शरीर को छेदकर धरती में समा गये।
उसी प्रकार अभिमन्यु के छोड़े हुए सुवर्णभूषित बाण भी अलम्बुष को विदीर्ण करके पृथ्वी में समा गये।
« पीछे | आगे » |