महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 101 श्लोक 21-41
एकाधिकशततम (101) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
जैसे इन्द्र युद्धस्थल में मयासुर को विमुख कर देते है, उसी प्रकार सुभद्राकुमार अभिमन्यु ने रणक्षेत्र में झुकी हुई गाँठवाले बाणों द्वारा मारकर उस राक्षस को युद्ध से विमुख कर दिया।
फिर समराडंगण में शत्रु से पीडि़त एवं विमुख हुए राक्षस ने शत्रुओं को तपानेवाली अपनी (अन्धकारमयी) तामसी महामाया प्रकट की। महीपते ! तब वे समस्त पाण्डव सैनिक अन्धकार से आच्छादित हो गये। अतः न तो रणक्षेत्र में अभिमन्यु को देख पाते थे और न अपने तथा शत्रुपक्ष के सैनिकों को ही। यह भयंकर एवं महान् अन्धकार देखकर कुरूकुल को आनन्दित करने वाले अभिमन्यु ने अत्यन्त उग्र भास्करास्त्र को प्रकट किया। राजन् ! इससे सम्पूर्ण जगत् में प्रकाश छा गया। इस प्रकार महापराक्रमी नरश्रेष्ठ अभिमन्यु ने उस दुरात्मा राक्षस की माया को नष्ट कर दिया और अत्यन्त कुपित हो झुकी हुई गाँठवाले बाणों द्वारा उसे समरभूमि में आच्छादित कर दिया। उस राक्षस ने और भी बहुत सी जिन-जिन मायाओं का प्रयोग किया, उन सबको सम्पूर्ण अस्त्रों के ज्ञाता अनन्त आत्मबल से सम्पन्न अभिमन्यु ने नष्ट कर दिया।
अपनी माया नष्ट हो जाने पर सायकों की मार खाता हुआ राक्षस अलम्बुष अत्यन्त भय के कारण अपने रथ को वहीं छोड़कर भाग गया। मायाद्वारा युद्ध करने वाले उस राक्षस के पराजित हो जाने पर अर्जुन कुमार अभिमन्यु ने तुरंत ही रणक्षेत्र में आपकी सेना का उसी प्रकार मर्दन आरम्भ किया, जैसे गन्धयुक्त मदान्ध गजराज कमलों से भरी हुई पुष्करिणी को मथ डालता है। तदन्तर अपनी सेना को भागती हुई देख शान्तनु नन्दन भीष्म ने बड़ी भारी बाण वर्षा करके सुभद्राकुमार अभिमन्यु को रोक दिया।
फिर आपके महारथी पुत्रों ने वीर अभिमन्यु को सब ओर से घेर लिया और युद्धस्थल में उस अकेले को बहुत से योद्धाओं ने सायकों द्वारा जोर-जोर से घायल करना आरम्भ किया। वीर अभिमन्यु अपने पिता अर्जुन के समान पराक्रमी था। बल और विक्रम से वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण की समानता करता था। सम्पूर्ण शस्त्रधारियों में श्रेेष्ठ उस वीर ने रणक्षेत्र में उन कौरव रथियों के साथ अपने पिता और मामा दोनों के सदृश अनेक प्रकार का शौर्यपूर्ण कार्य किया। तत्पशचात् वीर अर्जुन समराडंगण में आपके सैनिकों का संहार करते हुए अपने पुत्र की रक्षा के लिए अमर्ष में भरकर भीष्म के पास आ पहुँचे। राजन् ! जैसे सूर्य पर राहु आक्रमण करता है, उसी प्रकार आपके पितृव्य देवव्रत भीष्म ने समरभूमि में कुन्तीकुमार अर्जुन पर धावा किया। जनेश्वर ! उस समय आपके पुत्र रथ, हाथी, घोड़ों की सेना साथ लेकर युद्धस्थल में भीष्म को घेरकर खड़े हो गये और सब ओर से उनकी रक्षा करने लगे। राजन् ! भरतश्रेष्ठ ! उसी प्रकार पाण्डव अर्जुन को सब ओर से घेरकर कवच आदि से सुसज्जित हो महायुद्ध के लिये तैयार हो गये। राजन् ! उस समय भीष्म के सामने खड़े हुए अर्जुन को कृपाचार्य ने पचीस बाण मारे। तब जैसे सिंह हाथी पर आक्रमण करता है, उसी प्रकार सात्यकिने आगे बढ़कर पाण्डुनन्दन अर्जुन का प्रिय करने के लिए कृपाचार्य को अपने तीखे बाणों से घायल कर दिया। यह देख कृपाचार्य ने भी अत्यन्त कुपिता हो बड़ी उतावली के साथ सात्यकि की छाती में कडंकपत्रविभूषित नौ बाण मारकर उन्हें घायल कर दिया।
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