महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 101 श्लोक 42-59

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एकाधिकशततम (101) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: एकाधिकशततम अध्याय: श्लोक 42-59 का हिन्दी अनुवाद

तब वेगशाली सात्यकिने भी क्रोध में भरकर अपने धनुष को झुकाया और तुरंत ही उस पर कृपाचार्य का अन्त करने वाला बाण रखा। उस बाण का प्रकाश इन्द्र के वज्र के समान था। उसे वेग से आते देख परम क्रोधी अश्वत्थामा ने अत्यन्त कुपित हो उसके दो टुकड़े कर डाले। तब रथियों में श्रेष्ठ सात्यकिने कृपाचार्य को छोड़कर जैसे आकाश में राहु चन्द्रमा पर आक्रमण करता है, उसी प्रकार युद्धस्थल में अश्वत्थामा पर धावा किया। भारत ! उस द्रोणपुत्र ने सात्यकि के धनुष के दो टुकड़े कर दिये और धनुष कट जाने पर उन्हें सायकों से घायल करना आरम्भ किया। महाराज ! तब सात्यकि ने भार-साधन में समर्थ एवं शत्रु विनाशक दूसरा धनुष हाथ में लेकर साठ बाणों द्वारा अश्वत्थामा की भुजाओं तथा छाती को छेद डाला। इससे अत्यन्त घायल और व्यथित होकर मूर्छित हो ध्वज का सहारा ले वह दो घड़ी तक रथ के पिछले भाग में बैठा रहा। तत्पश्चात् प्रतापी द्रोणपुत्र ने होश में आकर कुपित हो समरभूमि में सात्यकि को नाराच से घायल कर दिया।
वह नाराच सात्यकि को छेदकर उसी प्रकार धरती में समा गया, जैसे वसन्त ऋतु में बलवान् सर्प शिशु बिल में घुसता है। इसके बाद दूसरे भल्ल से समरभूमि में अश्वत्थामा ने सात्यकि के उत्तम ध्वज को काट डाला और बड़े जोर से सिहंनाद किया। भारत ! महाराज ! तदन्तर जैसे वर्षा ऋतु में बादल सूर्य को ढक लेता है, उसी प्रकार उसने पुनः अपने भयंकर बाणों द्वारा सात्यकि को आच्छादित कर दिया। नरेश्वर ! उस समय सात्यकि ने उस बाण समूह को नष्ट करके तुरंत ही अश्वत्थामा के ऊपर अनेक प्रकार के बाणों का जाल सा बिछा दिया। फिर शत्रुवीरों का संहार करने वाले युयुधान ने मेघों की घटा से मुक्त हुए सूर्य की भाँति द्रोणपुत्र संताप देना आरम्भ किया। महाबली सात्यकि ने पुनः एक हजार बाणों की वर्षा करके अश्वत्थामा को ढक दिया और बड़े जोर से गर्जना की। जैसे राहु चन्द्रमा को ग्रस लेता है, उसी प्रकार सात्यकि के द्वारा अपने पुत्र पर ग्रहण लगा हुआ देख प्रतापी द्रोणाचार्य ने उनके ऊपर धावा किया। राजन् ! उस महायुद्ध में सात्यकि द्वारा पीडि़त हुए अपने पुत्र की रक्षा करने के लिये आचार्य ने तीखे बाण से उन्हें घायल कर दिया। तब सात्यकि ने रणक्षेत्र में गुरूपुत्र महारथी अश्वत्थामा को छोड़कर पूर्णतः लोहे के बने हुए बीस बाणों से द्रोणाचार्य को बींध डाला। इसी समय शत्रुओं को संताप देने वाले अमेय आत्मबल से सम्पन्न महारथी कुन्तीपुत्र अर्जुन युद्धस्थल में कुपित हो द्रोणाचार्य पर टूट पड़े। महाराज ! तत्पश्चात द्रोणाचार्य और अर्जुन उस महासमर में एक दूसरे से भिड़ गये, मानो आकाश में बुध और शुक्र एक दूसरे पर आक्रमण कर रहे हों।

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवधपर्व में अलम्बुष और अभिमन्यु का युद्धविषयक एक सौ एकवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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