महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 96 श्लोक 75-80
षण्णवतितम (96) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
योद्धाओं के मनोहर कुण्डलों से विभूषित, कमल एवं चन्द्रमा के समान कान्तिमान् तथा मूँछों से युक्त और अत्यन्त अलंकृत कटे हुए मस्तक, जिनमें सोने के सुन्दर कुण्डल जगमगा रहे थे, फेंके हुए से पड़े थे। महाराज ! इन सब वस्तुओं से आच्छादित हुई वहाँ की भूमि ग्रहों और नक्षत्रों से भरे हुए आकाश के समान विचित्र शोभा धारण कर रही थी। भारत ! इस प्रकार आपकी और पाण्डवों की वे दोनों विशाल सेनाएँ एक दूसरी से भिड़कर युद्धस्थल में रौंदी जा रही थी। भरतनन्दन ! उस समय जब अधिकांश सैनिक परिश्रम से चूर-चूर हो रहे थे, कितने ही भाग गये थे और बहुतेरे योद्धा रौंद डाले गये थे, रात हो गयी थी एवं हमें अपने सेवक नहीं दिखायी दे रहे थे, तब कौरवों और पाण्डवों ने अपनी अपनी सेना को युद्ध भूमि से लौटने का आदेश दे दिया। फिर उस महाभयानक तथा अत्यन्त रौद्र रूपवाले प्रदोष काल में कौरव तथा पाण्डव एक साथ अपनी सेनाओं को लौटाकर यथासमय शिविर में जा पहुँचे और विश्राम करने लगे।
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