श्रीमद्भागवत महापुराण द्वितीय स्कन्ध अध्याय 9 श्लोक 35-45

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द्वितीय स्कन्ध: नवम अध्यायः (9)

श्रीमद्भागवत महापुराण: द्वितीय स्कन्ध: नवम अध्यायः श्लोक 35-45 का हिन्दी अनुवाद
ब्रम्हाजी का भगवद्धाम दर्शन और भगवान् के द्वारा उन्हें चतुःश्लोकी भागवत का उपदेश


यह ब्रम्ह नहीं, यह ब्रम्ह नहीं—इस प्रकार निषेध की पद्धति से, और यह ब्रम्ह है, यह ब्रम्ह है—इस अन्वय की पद्धति से यही सिद्ध होता है कि सर्वातीत एवं सर्वस्वरुप भगवान् ही सर्वदा और सर्वत्र स्थित हैं, वही वास्तविक तत्व हैं। जो आत्मा अथवा परमात्मा का तत्व जानना चाहते हैं, उन्हें केवल इतना ही जानने कि आवश्यकता है । ब्रम्हाजी! तुम अविचल समाधि के द्वारा मेरे इस सिद्धान्त में पूर्ण निष्ठा कर लो। इससे तुम्हें कल्प-कल्प में विविध प्रकार की सृष्टिरचना करते रहने पर भी कभी मोह नहीं होगा । श्रीशुकदेवजी कहते हैं—लोकपितामह ब्रम्हाजी को इस प्रकार उपदेश देकर अजन्मा भगवान् ने उनके देखते-ही-देखते अपने उस रूप को छिपा लिया । जब सर्वभूतस्वरुप ब्रम्हाजी ने देखा कि भगवान् ने अपने इन्द्रियगोचर स्वरुप को हमारे नेत्रों के सामने से हटा लिया है, तब उन्होंने अंजलि बाँधकर उन्हें प्रणाम किया और पहले कल्प में जैसी सृष्टि थी, उसी रूप में इस विश्व की रचना की । एक बार धर्मपति, प्रजापति ब्रम्हाजी ने सारी जनता का कल्याण हो, अपने इस स्वार्थ को पूर्ति के लिये विधिपूर्वक यम-नियमों को धारण किया । उस समय उनके पुत्रों में सबसे अधिक प्रिय, परम भक्त देवर्षि नारदजी ने मायापति भगवान् की माया का तत्व जानने की इच्छा से बड़े संयम, विनय और सौम्यता से अनुगत होकर उनकी सेवा की और उन्होंने सेवा से ब्रम्हाजी को ही सन्तुष्ट कर लिया । परीक्षित्! जब देवर्षि नारद ने देखा कि मेरे लोक पितामह पिताजी मुझ पर प्रसन्न हैं, तब उन्होंने उनसे यही प्रश्न किया, जो तुम मुझसे कर रहे हो । उनके प्रश्न से ब्रम्हाजी और भी प्रसन्न हुए। फिर उन्होंने यह दस लक्षण वाला भागवतपुराण अपने पुत्र नारद को सुनाया, जिसका स्वयं भगवान् ने उन्हें उपदेश किया था । परीक्षित्! जिस समय मेरे परमतेजस्वी पिता सरस्वती के तट पर बैठकर परमात्मा के ध्यान में मग्न थे, उस समय देवर्षि नारदजी ने वही भागवत उन्हें सुनाया । तुमने मुझसे जो यह प्रश्न किया है कि विराट्पुरुष से इस जगत् की उत्पत्ति कैसे हुई तथा दूसरे भी जो बहुत-से प्रश्न किये हैं, उन सबका उत्तर मैं उसी भागवतपुराण के रूप में देता हूँ ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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