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१२:१४, ६ अगस्त २०१३ का अवतरण
- प्रभात जी की कविताओं में गुनगुनाहट है।
शरारत है। भीनी-भीनी बाँकी खुशबू है। इन्द्रधनुषी रंगों की भरमार है। सबसे बड़ी बात उनकी कविताओं में बालपन-बालमन-बचपना और और भी बहुत कुछ दिखता भी है और महसूस भी होता है। एक बानगी :- .......... चाँद नहाया बादल में, रात नहाई काजल में, तारे नीले अम्बर में, नावें नील समन्दर में।
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